श्वेतार्क गणपति : दुर्लभ और धन-संपन्नता देने वाली तांत्रिक शक्ति

श्वेतार्क पौधा – क्या है इसकी खासियत?

नेपाल और हिमालय की तराई में एक छोटा-सा पौधा उगता है, जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। नेपाल में इसे “आकुरो”, राजस्थान में “आकड़ा” और संस्कृत में “अर्क” कहते हैं। इसके पत्ते हरे होते हैं और उस पर नीले रंग के छोटे फूल खिलते हैं, जिन्हें “अकडोडिया” कहा जाता है।

लेकिन इस पौधे की सबसे दुर्लभ किस्म है – सफेद अर्क (श्वेतार्क)। इसके पत्ते और फूल दोनों सफेद होते हैं। लाखों पौधों में से कभी-कभार ही ऐसा श्वेत अर्क दिखाई देता है। यही इसे अद्भुत और चमत्कारी बनाता है।

श्वेतार्क गणपति कैसे बनते हैं?

जब इस पौधे की जड़ को बेहद सावधानी से निकाला जाता है और पानी में कुछ दिन भिगोकर रखा जाता है, तो इसकी जड़ पर भगवान गणेश की आकृति खुद-ब-खुद उभर आती है। कई बार जड़ पूरी तरह से गणेशजी जैसी लगती है – मोटा शरीर, भुजाएँ और सूँड तक। इसलिए इसे श्वेतार्क गणपति कहा जाता है।

क्यों है इतना खास श्वेतार्क गणपति?

तांत्रिक और धार्मिक ग्रंथों में इसका विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि:

  • जिस घर में श्वेतार्क गणपति की स्थापना कर प्रतिदिन पूजा की जाती है, वहाँ कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती।
  • परिवार के सभी सदस्य सुख, शांति और सफलता का अनुभव करते हैं।
  • यह साधक के जीवन की बाधाओं को दूर करता है और हर कार्य में सफलता दिलाता है।

साधना का शुभ समय (मुहूर्त)

किसी भी तांत्रिक प्रयोग की तरह श्वेतार्क साधना में भी शुभ समय का ध्यान रखना जरूरी है।

  • रविवार को पुष्य नक्षत्र (रविपुष्य योग) – सबसे उत्तम समय माना जाता है।
  • गुरुवार को पुष्य नक्षत्र (गुरुपुष्य योग) – विशेष फलदायी होता है।

इन योगों में किया गया जड़ी-बूटी संग्रह, मंत्र-जाप और पूजा जीवन में विशेष लाभ देता है।

श्वेतार्क गणपति की पूजा विधि

  1. जड़ को शुद्ध जल से धोकर लाल कपड़े पर स्थापित करें।
  2. पूजा में लाल चंदन, अक्षत, लाल पुष्प और सिंदूर का प्रयोग करें।
  3. धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित कर कोई सिक्का भी चढ़ाएँ।
  4. इसके बाद गणपति के किसी भी मंत्र का जाप करें, जैसे –
    • ॐ गं गणपतये नमः
    • ॐ एकदन्ताय नमः
    • ॐ लम्बोदराय नमः

👉 मंत्र जाप हमेशा संकल्प लेकर करें। 108 दानों की माला से 10 माला यानी 1000 बार मंत्र जप श्रेष्ठ माना गया है।

श्वेतार्क गणपति के विशेष प्रयोग

1. सुरक्षा के लिए

श्वेतार्क मूल को रविपुष्य योग में पूजित कर ताबीज या कवच के रूप में पहनने से भूत-प्रेत, नजर, टोना और नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं।

2. वशीकरण तिलक

श्वेतार्क मूल को गाय के घी और गोरोचन के साथ घिसकर माथे पर तिलक करने से आकर्षण और सम्मोहन की शक्ति मिलती है।

3. सौभाग्य वृद्धि

नाभि पर कमलपत्र और दाहिने हाथ पर श्वेतार्क मूल धारण करने से भाग्य और समृद्धि बढ़ती है।

4. गृह रक्षा

रविपुष्य योग में श्वेतार्क का पौधा घर के दरवाजे के सामने लगाएँ। जब तक यह पौधा जीवित रहेगा, घर पर कोई भी नकारात्मक असर या तांत्रिक प्रभाव काम नहीं करेगा।

5. शरीर की सुरक्षा

गले या बाजू में श्वेतार्क मूल का टुकड़ा बाँधने से अचानक आने वाली आपदाओं और अदृश्य शक्तियों से रक्षा होती है।

6. दाम्पत्य सुख और स्तम्भन

कमर में श्वेतार्क मूल का टुकड़ा बाँधकर सम्भोग करने से वीर्य स्तम्भन होता है और दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है।
कुछ लोग श्वेतार्क के दूध और शहद से दीपक बनाकर भी इसका प्रयोग करते हैं।

निष्कर्ष

श्वेतार्क गणपति वास्तव में साधकों और श्रद्धालुओं के लिए दुर्लभ वरदान है। यह न केवल धन और समृद्धि देता है बल्कि सुरक्षा, सौभाग्य और दाम्पत्य सुख भी प्रदान करता है। शास्त्रों में इसे साक्षात गणेशजी का स्वरूप कहा गया है।

यदि इसे विधि-विधान से प्राप्त कर पूजा की जाए, तो यह जीवन को हर तरह से सफल और संतुलित बना देता है।

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