हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु का वामन अवतार स्मरण किया जाता है। इस बार यह शुभ अवसर 4 सितम्बर 2025, गुरुवार को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण वामन का रूप धारण करके दैत्यराज बलि को धर्म और भक्ति का सच्चा मार्ग दिखाया।

वामन अवतार का प्राकट्य
शास्त्रों के अनुसार, वामन अवतार भाद्रपद शुक्ल द्वादशी के मध्याह्न में हुआ था। उस समय श्रवण नक्षत्र और अभिजित मुहूर्त विद्यमान था। इस कारण इस तिथि को विशेष महत्व दिया गया और इसे विजयाद्वादशी भी कहा गया है।
शास्त्रीय प्रमाण और उल्लेख
- भागवत पुराण (स्कंध 8, अध्याय 17–23) में वामन अवतार की कथा विस्तार से मिलती है।
- अध्याय 18 (श्लोक 5-6) में स्पष्ट कहा गया है कि भगवान वामन का जन्म श्रवण नक्षत्र में हुआ।
- गदाधर पद्धति (कालसार, पृ. 147-148) और व्रतार्क (पाण्डुलिपि 244A–247A, भविष्योत्तर पुराण से उद्धृत) में भी इसका वर्णन है।
- हेमाद्रि (व्रतकाण्ड, भाग 1, पृ. 1138–1145) में भविष्योत्तर पुराण से उद्धरण लेकर इस व्रत का महत्व बताया गया है।
वामन अवतार की कथा
कहा जाता है कि दैत्यराज बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। इंद्रलोक तक उनके अधीन हो चुका था। ऐसे समय में धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन नामक एक छोटे ब्राह्मण का रूप लिया।
यज्ञभूमि में पहुँचकर वामन ने बलि से केवल तीन पग भूमि का दान मांगा। बलि ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। उसी क्षण वामन का शरीर विराट हो गया –
- पहले पग में उन्होंने पूरी पृथ्वी नाप ली,
- दूसरे पग में आकाश भर लिया,
- और तीसरे पग के लिए जब जगह शेष न रही, तो बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया।
भगवान उनकी भक्ति और दानशीलता से प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। साथ ही वचन दिया कि वे सदा भगवान के सान्निध्य में रहेंगे।
व्रत और पूजा का महत्व
वामन जयंती पर उपवास करने, भगवान विष्णु का पूजन करने और वामन अवतार की कथा सुनने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से—
- पापों का नाश होता है,
- मनुष्य को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है,
- और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रद्धालु इस दिन व्रत, दान-पुण्य और संकीर्तन का आयोजन करते हैं। घरों और मंदिरों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा होती है।
निष्कर्ष
वामन जयंती 4 सितम्बर 2025 केवल एक धार्मिक तिथि ही नहीं, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि अहंकार चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, भगवान की लीला के सामने उसका अस्तित्व नहीं टिक सकता। राजा बलि की दानशीलता और भगवान विष्णु की दिव्य लीला हमें सिखाती है कि भक्ति और समर्पण ही जीवन का वास्तविक धन है।