चतुर्थी व्रत क्यों है विशेष? जानिए इसका विज्ञान और महत्व

हिंदू धर्म में हर तिथि और वार का अपना विशेष महत्व माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रत्येक तिथि किसी न किसी देवता या ग्रह के प्रभाव में आती है। यही वजह है कि चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की उपासना का दिन माना गया है।

तिथियों के अधिष्ठाता कौन हैं?

पुराणों में तिथियों के अधिष्ठाताओं का उल्लेख इस प्रकार किया गया है:

तिथिअधिष्ठाता देवता
1 (प्रतिपदा)अग्नि
2ब्रह्मा
3गौरी
4गणेश
5सर्प
6कार्तिकेय
7सूर्य
8वसु
9दुर्गा
10काल
11विश्वेदेव
12विष्णु
13कामदेव
14शिव
15चंद्रमा
अमावस्यापित्तर

जैसा कि देखा जा सकता है, चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता भगवान गणेश हैं, जो विघ्न और बाधाओं को हरने वाले देवता माने जाते हैं।

चतुर्थी का विशेष महत्व

चतुर्थी के दिन सूर्य और चंद्रमा का जो स्थान होता है, वह मनुष्य के जीवन में संभावित बाधाओं का संकेत देता है।

यदि इस दिन साधना, व्रत और पूजन किया जाए, तो:

  • अंतःकरण शांत और संयमित रहता है।
  • जीवन में आने वाली बाधाओं का प्रभाव कम होता है।
  • विघ्नों और नकारात्मक घटनाओं से सुरक्षा मिलती है।

इसलिए चतुर्थी व्रत को विशेष महत्व दिया गया है।

सूर्य और चंद्रमा का प्रभाव

सूर्य ब्रह्मांड की प्राणशक्ति है और चंद्रमा ब्रह्मांड की मनःशक्ति का प्रतीक। दोनों ग्रहों की स्थिति तिथि के प्रभाव को तय करती है।

  • अमावस्या: चंद्रमा सूर्य की कक्षा में विलीन होता है।
  • पूर्णिमा: सूर्य और चंद्रमा आमने-सामने रहते हैं।
  • अष्टमी: दोनों ग्रह अर्ध-सम दूरी पर होते हैं।

यही उनके तालमेल तिथि के अनुसार हमारी मानसिक और शारीरिक स्थिति पर असर डालता है।

काल का महत्व

हिंदू धर्म में सृष्टि और प्रलय जैसी बड़ी घटनाओं से लेकर छोटे कर्मों तक में काल को प्रधान कारण माना गया है।

मूर्ख यह सोच सकते हैं कि काल निष्क्रिय है, लेकिन वास्तव में यही कारण है:

  • अस्तित्व
  • जन्म और मृत्यु
  • वृद्धि और परिवर्तन
  • विनाश

सूर्य और चंद्रमा इस काल निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि सभी सकाम व्रत चंद्र तिथियों पर आधारित हैं

निष्कर्ष

चतुर्थी तिथि केवल एक दिन नहीं, बल्कि जीवन में बाधाओं को दूर करने और मानसिक संयम बनाए रखने का अवसर है। इस दिन गणेश व्रत और पूजा करने से न केवल मन शांत रहता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और सफलता भी आती है।

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